आपसी फूट
एक व्याध ने पक्षियों को फँसाने के लिए अपना जाल बिछाया। जाल में दो पक्षी फंसे, किंतु उन पक्षियों ने झटपट सलाह की और जाल को लेकर उड़ने लगे। व्याध को यह देख कर बड़ा दुख हुआ। वह उन पक्षियों के पीछे भूमि पर दौड़ने लगा।
कोई ऋषि अपने आश्रम में बैठे यह दृश्य देख रहे थे।
उन्होंने व्याध को समीप बुलाकर पूछा, “तुम व्यर्थ क्यों दौड़ रहे हो? पक्षी तो जाल लेकर आकाश में उड़ रहे हैं।”
व्याध बोला, “भगवान, अभी इन पक्षियों में मित्रता है। वे परस्पर मेल करके एक दिशा में उड़ रहे हैं। इसी से वे मेरा चाल लिए जा रहे हैं। परंतु कुछ देर में इन में झगड़ा हो सकता है। मैं उसी समय की प्रतीक्षा में इनके पीछे दौड़ रहा हूं। परस्पर झगड़ा कर जब वे गिर पड़ेंगे, तब मैं उन्हे पकड़ लूँगा।”
व्याध की बात ठीक निकली। थोड़ी देर उड़ते-उड़ते जब पक्षी थक, तब उनमे इस बात को लेकर विरोध हो गया कि उन्हें कहा ठहरना चाहिए। विरोध होते ही उनके उड़ने की दिशा और पंखों की गति समान नहीं रह गई। इसका फल यह हुआ कि वह उस जाल को संभाल नहीं रख सके। जाल के भार से लड़खड़ाकर स्वयं भी गिरने लगे और एक बार गिरना प्रारंभ होते ही जाल में उलझ गए। अब उनके पंख भी फँस चुके थे। जाल के साथ में भूमि पर गिर पड़े। व्याध की इच्छा की पूर्ति इस प्रकार हो गई। यह महाभारत का प्रसंग है। व्याध की दूरदर्शिता सचमुच सराहनीय है।
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