निकम्मापन

दो व्यक्ति अफ़ीम खाकर एक पेड़ के नीचे बैठे थे। वृक्ष था बेर का। शाखा से एक बेर गिरा। एक अफीमची की छाती पर आ पड़ा। परंतु वह अफीमची ही क्या जो हाथ-पाँव हिलाए। रातभर बेर उसकी छाती पर पड़ा रहा और वह प्रतीक्षा करता रहा कि दूसरे अफीमची उठे और बेर को उसके मुंह में डाल दे; परंतु दूसरा भी तो अफीमची था। वह भी रात भर लेटा रहा, उठा नहीं। प्रातः एक व्यक्ति उधर से निकला। उसने ध्यान से उन दोनों को देखा। पहले समझा, शायद मर गए हैं, मिलते-डुलते नहीं। शायद रात में किसी सर्प अथवा विषैले कीड़े ने काट लिया है और दोनों के प्राण-पखेरु उड़ गए हैं। परंतु पास गया तो देखा कि दोनों की आँखें खुली हैं। दोनों टुकुर-टुकुर देख रहे हैं। आश्चर्य से उसने पूछा, “तुम्हें क्या हुआ है?”

वह पैर वाले के पास खड़ा था। वीर वाले ने धीमी आवाज़, “यह बेर उठा कर मेरे मुंह में डाल दो।”

उस व्यक्ति ने  बेर उठाया, उसके मुंह में डाल दिया, बोला, “ यह बेर क्या अभी गिरा है?”

अफीमची ने कहा, “नहीं भाई! रात से  पड़ा है!”

उस व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा, “रात से यह पड़ा है, तुम्हारे दोनों हाथ विद्यमान हैं, तुमने इसे उठाया क्यों नहीं? बहुत आलसी प्रतीत होते हो तुम?”

पास लेटा हुआ दूसरा अफीमची बोला, “इसकी सुस्ती की मत पूछो बाबूजी। रात भर कुत्ता मेरा मुंह चाटता रहा, और इससे यह भी नहीं हो सका कि उसे बाहर हटा दे।”

उस व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा, “तुम्हारे भी तो हाथ हैं।”

अफीमची बोला, “परंतु मैं तो लेटा था न? उठता कैसे?”

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