देवता और असुर
देवताओं और असुरों की एक मनोरंजक कहानी आपको सुनाता हूं। एक धनी सज्जन ने एक बार बहुत से विद्वानों को भोजन का निमंत्रण दिया। अतिथियों में देवता भी थे और असुर भी। जब अतिथि एकत्रित हुए तो असुरों ने गृहपति से कहा, “आप लोग सदा हमारे साथ अन्याय करते हैं, अब हम अन्याय सहन नहीं करेंगे।” गृहपति ने पूछा, “कौन सा अन्याय होता है?”
असुर बोले, “विद्या में क्या, ज्ञान में, विज्ञान में, शक्ति में, हर बात में हम देवताओं से आगे हैं। इतना होते हुए भी जहां कहीं भी हम दोनों को बुलाया जाता, वहां पहले देवताओं को भोजन मिलता है, बाद में हमको। यह अन्याय सहन करने योग्य नहीं है। आप देवताओं के साथ हमारा शास्त्रार्थ कराइए किसी भी विषय पर, यदि हम जीत जाएँ, तो इस अन्याय को समाप्त कीजिए। अथवा हम इस अन्याय को चलने नहीं देंगे।”
गृहपति ने कहा, “आप क्रोध ना कीजिए, पहले आप ही भोजन करें, देवता पीछे खा लेंगे; परंतु एक शर्त आपको माननी होगी।”
असुरों ने पूछा, “ क्या शर्त है?”
गृहपति ने कहा, “शर्त यह है कि आपके दोनों हाथों के साथ कोई तीन-तीन फ़ीट की लकड़ियाँ बांध दी जाएंगी। एक लकड़ी दायें हाथ के साथ, दूसरी बायें हाथ के साथ; ऐसी स्थिति में आपको भोजन करना होगा।”
असुरों ने कहा, “ऐसा ही सही, हम खा लेंगे।” बांध दी गई लकड़ियां। असुर लोग बैठ गए। सामने पत्तल रख दिए गए। उन में भोजन परोसा जाने लगा। पूड़ी, कचौड़ी, हलवा, खीर, गुलाब जामुन, गोभी, मटर, आलू, टमाटर सब रख दिए गए।
गृहपति ने कहा, “अब खाओ आप सब!”
असुरों ने खाने के लिए हाथ बढ़ाये, हाथों में लकड़ियां बंधी थी। उन्होंने हाथ से पूड़ी उठाई कि मुंह में डालें; परंतु वह मुंह में पहुंचने के बजाए सिर के पीछे जा गिरी। इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु का बुरा हाल हुआ। आधा घंटा तक असर लोग प्रयत्न करते रहे, परंतु एक भी ग्रास उनके मुंह में नहीं गया।
आधे घंटे के पश्चात गृहपति ने कहा, “अब उठो असुरों! आप का समय हो गया। अब देवता भोजन करेंगे। असुर बेचारे भूखे ही उठ गए। स्थान को साफ किया गया। नई पत्तलें रखी गयीं। उनके पास देवताओं को बैठा दिया गया। उनके हाथों में भी तीन-तीन फ़ीट की लकड़ियां बांध दी गई। उनकी पत्तलों में भी खाना परोस दिया गया। उनसे भी कहा गया, “अब खाओ, देवताओं!”
देवताओं ने कहा, “हम खाएंगे अवश्य; परंतु एक दूसरे के सामने बैठकर खाएंगे। हम आधे लोग इधर बैठेंगे, आधे उधर। उनके सामने उनकी पत्तलें और हम लोगों के सामने हमारी पत्तलें रख दीजिए।”
गृहपति ने ऐसा ही किया। देवता एक दूसरे के सामने बैठ गए। एक देवता ने अपने हाथों से सामने बैठे देवता की पत्तल से पूड़ी उठाई और उसके मुंह में डाल दी। सामने बैठे देवता ने पहले देवता के आगे रखी पत्तल से कचौड़ी उठाई, उसके मुंह में डाल दी। इस प्रकार सब देवताओं ने एक-दूसरे को भोजन खिला दिया, पत्तल पर रखी भोजन की वस्तुएँ समाप्त कर दीं, सब का पेट भर गया।
यह देवता और असुर में अंतर! असुर केवल अपना पेट भरना चाहता है परंतु भर नहीं पाता। देवता दूसरे को खिलाकर प्रसन्न होता है। और को खिलाने से उसका पेट भी भर जाता।
देवता और असुर दोनों विद्वान हैं, दोनों शक्तिशाली हैं, दोनों शास्त्र को जानने वाले हैं, परंतु दोनों की वृति अलग-अलग है। देवता दूसरे को सुखी करने का यत्न करता है, दूसरे के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देता है। असुर अपने प्राणों की रक्षा के लिए दूसरों का गला काट कर खा जाता है। वृति का अंतर है दोनों में। यदि असुरों की वृति अच्छी हो जाए, तो देवता और असुर दोनों में कोई भेद न रह जाए।
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