तेती पाँव पसारिये जेती लाँबी सौर
अकबर बादशाह बैठे थे राज्यसभा में। एक कारीगर ने एक बहूत सुंदर रेशमी चादर लाकर उन्हें दी। बहूत अच्छे और सुंदर रंगों के फूल उस पर बने थे। महाराज ने चादर खोली और देखा की उनके शरीर से कुछ छोटी है। तभी उन्हें एक बात सूझी। चादर को ओढ़कर बोले, “देखो भाई, मैं फर्श पर लेटता हूँ। चादर को मेरे ऊपर उड़ा दो।”
अकबर भूमि पर बिछे क़ालीन पर लेट गये। कारीगर ने चादर उन पर ओढाई तो पाँव खुले रह गए। पाँव ढांपे तो सिर कि ओर खुला रह गया।
बादशाह ने कहा, “अरे! छोड़ो, तुम एक अशिक्षित शिल्पी हो। ये बड़े-बड़े विद्वान दरबारी बैठे हैं, इन्हें यह कार्य करने दो। आओ भाई चादर तो इस प्रकार उढाओ कि कोई अंग नंगा न रहे।”
उनमे से एक व्यक्ति बहार आये। उन्होंने प्रयत्न किया, परंतु परिणाम वही, सिर ढका तो पाँव खुले रह गये, पाँव ढके तो सिर पर चादर नहीं। बादशाह अकबर ने क्रोध से कहा, “मूर्ख हो तुम! हटो यहाँ से, किसी दूसरे को आने दो।”
एक और व्यक्ति आया। उन्होंने भी प्रयत्न किया परंतु, परिणाम फिर वही। तब एक व्यक्ति और आये, फिर और, फिर और, फिर और….
जो, सब के सब दरबारी आये। कोई भी अकबर बादशाह के ऊपर वह चादर इस प्रकार नहीं उढ़ा सका की सारा शरीर ढक जाये।
बादशाह उठकर बैठ गये, बोले, “तुम सब मूर्ख हो। यह छोटीसी बात भी नहीं कर सके।” किसी ने कहा, “महाराज! चादर ही छोटी है, फिर हम क्या करें?”
अकबर ने कहा, “आने दो बीरबल को, इस समस्या का समाधान करेगा।”
तभी बीरबल वहां आ पहुँचे, बोले, “महाराज! आप किस चिंता में हैं?”
अकबर ने कहा, “बीरबल! ये सब दरबारी तुमसे ईर्ष्या करते हैं। कहते हैं की हम जो तुम्हारा अधिक मान-सम्मान करते हैं, वह व्यर्थ ही करते हैं। सचमुच तुम्हारे गुणों की इन्हें परख नहीं है। आज इन्हें बताओ कि तुममे क्या विशेषता है। यह चादर है, हम चाहते हैं, इससे हमारा शरीर ढक जाये, परंतु ढकता ही नहीं है।”
बीरबल ने चादर हाथ में लेकर देखी कि वस्तुतः वह छोटी है। बोले, “क्या चाहते हैं आप?”
बादशाह ने क़ालीन पर लेटकर कहा, “इसको हमारे ऊपर इस प्रकार ओढ़ा दो कि शरीर का कोई अंग खुला न रहे।”
बीरबल ने कहा, “यह तो कोई कठिन कार्य नहीं है, परंतु कृपा कर आप ठीक से लेटिए!”
अकबर ने पूछा, “ठीक किस प्रकार से?” बीरबल ने कहा, “जैसे बच्चा सोता है, टाँगें छाती के साथ लगाकर, पैर समेट कर।”
महाराज वैसे ही लेट गए। बीरबल ने चादर उनके ऊपर ओढ़ा दी। सारा शरीर ढक गया, पाँव से सिर तक। बीरबल ने हँसते हुए कहा, “महाराज! जितनी चादर हो उतना ही पाँव फैलाना चाहिए। तभी ठीक प्रकार से काम बन पाता है।”
तभी से यह मुहावरा आरम्भ हुआ की ‘तेती पाँव पसारिये जेती लाँबी सौंर’। जितनी आय है उससे काम खर्च करो। अधिक व्यय करोगे तो काम नहीं चलेगा। तुम्हारा अपना ही खर्च पूरा नहीं होगा, तो दूसरे की सहायता तुम क्या करोगे?
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