प्रभु से कहो


बन्दर का बच्चा अपनी माँ को अपने हाथ-पाँव से पकड़ कर रहता है। उसकी माँ जब एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल कर जाती है, वह बच्चा बहुधा उस झटके से अपनी माँ के बन्धन से छूटकर गिर जाता है, उसे चोट लग जाती है। लेकिन बिल्ली के बच्चे को बिल्ली अपने दाँतों से दबाकर चलती है। बच्चे को कोई चिंता नहीं रहती की उसकी माँ उसे कहाँ ले जाएगी। चाहे राखी के ढेर पर ले जाए, या किसी बिछे हुए मुलायम बिचौने पास ले जाए। जहाँ मर्ज़ी हो वहाँ ले जाए। बच्चे को कोई चिंता नहीं, कि कभी वह माँ से बिछुड़ जाएगा। कारण माँ ही अपने दाँतों से उसको पकड़े हुए है। वह पकड़ मज़बूत है। इसके बदले कहीं बच्चा माँ को पकड़ता तो वह पकड़ किसी झटके से ढीली भी पड़ सकती है।

ठाकुर रामकृष्ण परमहंस अपने भक्तों से कहा करते थे कि ठीक बिल्ली के बच्चों की तरह ही अपने इष्ट से कहो कि “हे भगवान! हमारा हाथ पकड़े रहो। तुम्हारी पकड़ से मैं कभी नहीं अलग हो पाऊंगा। कारण तुम्हारी पकड़ मज़बूत है। मैं तुम्हें पकड़ने में असमर्थ हूँ। यह रहा मेरा हाथ, इसे सख़्ती से पकड़ कर मुझे निहाल कर दो।”

एक दूसरा दृष्टान्त भी वह देते थे। एक खेत में से दो बच्चों को लेकर एक किसान चला जा रहा था। छोटे बच्चे को वह गोद में लिए हुए था। दूसरा बच्चा बड़ा था, एवं स्वयं चल सकता था। वह बाप का हाथ पकड़ कर चल रहा था। मेढ़ का रास्ता सँकरा था। चलते-चलते सर पर से एक चील उड़कर निकल गई। दोनों बच्चे खुश हो गए और ताली पीट कर किलकारियाँ भरने लगे। छोटा बच्चा गोदी में था, इसलिए वह गोदी में ही रहा। वह जानता था की वह पिता की गोदी में है लेकिन बड़ा बच्चा जैसे ही पिता का हाथ छोड़कर ताली बजाने लगा, उस मेढ़ पर से नीचे गिर पड़ा। उसे चोट लग गयी और रोने लगा।

ठाकुर कहते थे, छोटे बच्चे की तरह ही परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करो कि तुम्हें गोद में भर कर रखे। उनकी गोद में चढ़कर निश्चिन्त हो जाओगे।

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