परख
ठाकुर श्री रामकृष्णदेव की साधनास्थली दक्षिणेश्वर के जमींदार नवीन रायचौधरी के पुत्र योगेन का विवाह हो गया था, लेकिन वे अधिकतर रात्रि में घर न जाकर ठाकुर की सेवा में पड़े रहते थे। जब सब लोग रात्रि में अपने घर चलें जाएँ तब वे ठाकुर की सेवा का कोई अवसर प्राप्त कर सके, इसी आकांक्षा से रहते थे।
एक दिन रात्रि में ठाकुर ने भोजन किया एवं योगेन ने भी भोजन कर लिया। ठाकुर अपनी बड़ी खटिया पर सोने के लिए लेट गए। योगेन भी भूमि पर बिस्तर लगाकर सो गये। मध्य रात्रि में ठाकुर को बाहर जाने की आवश्यकता पड़ी। योगेन की तरफ़ देखा, जोकि गाढ़ निद्रा में सो रहा था। उनको इस गाढ़ निद्रा में जगाना ठीक नहीं समझा, स्वयं ही दरवाज़ा खोलकर बाहर जंगल की तरफ चले गए।
थोड़ी देर बाद ही योगेन की आँखें खुलीं, देखा घर का दरवाज़ा खुला पड़ा है। पलंग पर ठाकुर नहीं हैं। अकेले कहाँ चले गए इतनी रात में। निवृत्त होने जाते तो लोटा-तौलिया लेकर जाते, जोकि वहीँ रखे थे। हो सकता है चाँदनी रात में गंगा तट पर टहलने निकले हों, इस समय सुहावनी हवा बह रही है, उसी का आनंद ले रहें हों। चल कर देखते हैं गंगा तट पर। लेकिन यह क्या यहाँ भी तो नहीं हैं। कहीं भी कोई आहट नहीं मिली।
अकस्मात् उनके विचार मलिन हो उठे। हो सकता है इतनी रात चुपचाप अपनी स्त्री के पास अपनी कुटिया में गए हों। कलुषित विचारों से वह आतंकित हो उठा। क्या पता, दिन में उपदेश में कुछ कहते हैं, रात में कुछ और ही बात हो। इसके ओर-छोर का पता लगाना होगा। वे माँ शारदा की कुटिया की तरफ चल पड़े एवं दूर खड़े होकर दरवाज़े की तरफ नज़र टिकाये रखे। यद्यपि यह अनुचित था, लेकिन इसका निर्णय हुए बिना मन अशांत हो उठा था।
यदि ठाकुर को उस कुटिया के दरवाज़े से निकलते देख लिया तो फिर कभी दक्षिणेश्वर की तरफ हम कदम भी नहीं रखेंगे। इतने में किसी के चलकर आने की आहट सुनाई दी। यह क्या? ठाकुर तो पंचवटी (साधनास्थल) की तरफ से चले आ रहे हैं। योगेन का लज्जा से बुरा हाल था, कहीं छिपने का रास्ता भी नहीं था, यदि धरती फट जाती तो वह उसमे समा जाता और जान बचती।
ठाकुर ने पूछ ही लिया, “यहाँ क्यों खड़े हो?” योगेन चुप। लेकिन ठाकुर तो अन्तरदर्शी थे, एक पल में सब बातें समझ लीं। तो भी मन में मलिनता नहीं थी। स्नेह भरी वाणी से बोले, “अच्छा किया, यही तो होना चाहिए। किसी साधु को जल्दी से विश्वास नहीं करना चाहिए। दिन-रात उनका आचरण देखो, ठीक हो तो विश्वास करो। अब चलो अंदर चलकर सो जाओ।”
ठाकुर के पीछे-पीछे योगेन अंदर गया। साड़ी रात वह सो न सका। पश्चाताप की अग्नि में जलाता रहा। बार-बार मानसिक क्षमा माँगने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया था।
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