गाँधी जी और प्रार्थना

महापुरुषों की जयंतियाँ मनाने का प्रत्यक्ष फल होता है। इस अवसर पर हम उनके गुणों का चिंतन एवं उनकी चर्चा करते हैं। यह निश्चय है कि गुणों का चिंतन करने से यह गुण अपने में यत्किंचित आ जाते हैं। ऐसे ही किसी के अवगुणों की चर्चा की जाए तो अवगुण भी कुछ अंशों में जीवन को प्रभावित किए बिना नहीं रहते।

पूज्य बापू महात्मा गांधी के गुणों का कोई अंत नहीं है। आज इस अवसर पर हम उनके गुणों की यत्किंचित चर्चा कर कुछ मार्गदर्शन प्राप्त करने का प्रयास इस छोटे से लेख में करना चाहेंगे। उनके जीवन में घटी छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से यह प्रयास सरलता से संभव हो सकता है।

एक सज्जन गाँधीजी के प्रति द्वेष भाव रखता था। अपना रोष प्रकट करने के लिए उक्त सज्जन दो-तीन पृष्ठों में अपनी संकुचित दृष्टि को प्रतिफलित करते हुए बापू की अनेक बुराइयों का संकलन कर उनके बारे में अनेक खोटी-खरी बातें लिखकर स्वयं ही उनके पास ले गया। लिखा हुआ कागज़ गांधी जी को देकर उनके प्रतिक्रिया जाने के लिए वहां उपविष्ट हो गया। गाँधीजी ने उनके लिखे हुए विवरण को ध्यान से आद्योपांत पढ़ा। पढ़ने के बाद इस पत्र में लगा हुआ और आलपिन निकालकर पास में खड़े हुए एक आश्रमवासी को देते हुए कहा, इसको सम्हालकर रखना ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसका उपयोग किया जा सके। इतना कहकर पत्र उक्त सज्जन को वापस कर दिया एवं अन्य कार्य में लग गए।

गाँधीजी के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया न देखकर उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। और कहा, “मैंने इस पत्र में आपकी बुराई की है, आपने इसके बारे में कुछ नहीं कहा।” गांधी जी ने शांत स्वर में कहा - “भाई, यदि आपको कोई व्यक्ति वस्तु देता है, एवं आप के उपयोग की वस्तु न हो तो आप क्या करेंगे?” व्यक्ति ने कहा - “देने वाले को लौटा देंगे।” अब गाँधीजी ने कहा - “आप की दी हुई सामग्री में से पत्र में लगी हुई आलपिन हमारे उपयोग में आने की है, उसको हमने सम्हालकर रख लिया है। जबकि यह पत्र मेरे किसी काम का नहीं, इसलिए आपको लौटा दिया है।”

अब व्यक्ति गर्दन नीची किए चुपचाप वहां से चलता बना। गाँधीजी अपने काम में लग गए।

गाँधीजी के पास कोई भी ऑटोग्राफ लेने आता था, उसका भी कुछ न कुछ मूल्य लेते थे। वे कहते ऑटोग्राफ का मूल्य ‘आधा घंटा प्रतिदिन चरखा कातना और खादी धारण करना है।’ एक दिन एक लड़की ऑटोग्राफ पुस्तिका लेकर आई और ऑटोग्राफ चाहा। गाँधीजी ने वही मूल्य मांगा, तो लड़की ने चरखा कातना एवं खादी पहनने की प्रतिज्ञा की। गांधी जी ने धन्यवाद देते हुए नीचे लिखे वाक्य को लिखकर अपना ऑटोग्राफ दिया।

“जल्दी में कभी कोई प्रतिज्ञा ना करो। पर एक बार प्रतिज्ञा कर लेने पर उसको प्राणपण से निभा दो।”

एक बार गाँधीजी को दक्षिण भारत के दौरे में चर्चा दंगल देखने में बड़ी देर हो गई। रात में जब लौटे तो बहुत थक गए थे। चारपाई पर लेटते ही नींद आ गई। रात्रि में दो बजे उनकी नींद खुली तो याद आया कि सोने के पूर्व जो नियमित प्रार्थना करते हैं, वह करना भूल गए हैं। फिर तो वे सारी रात सोए नहीं। बड़ा पश्चाताप हुआ। शरीर थर-थर काँपने लगा। सारे शरीर पसीने से लथपथ हो गया। प्रातःकाल लोगों ने उनकी इस परेशानी का कारण जानना चाहा तो गाँधीजी ने सारी बात बतलाते हुए कहा - “जिसकी कृपा से मैं जीता हूं, उस भगवान को ही भूल गया, इससे बढ़कर बड़ी गलती क्या होगी?”

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