संयम के कारण
बात उन दिनों की है जब नेपोलियन छात्रावस्था में था। उन दिनों अक्लोनी नामक स्थान में उन्हें एक नाई के घर में रहना पड़ा था। नेपोलियन बहुत सुंदर एवं सुकुमार थे, उनकी आकृति में आकर्षण था। नाई की स्त्री उन पर मुक्त हो गई थी और नेपोलियन को अपनी और आकर्षित करने का प्रयत्न निरंतर करती रहती थी। लेकिन नेपोलियन को तो अध्ययन से ही अवकाश नहीं मिलता था। वह स्त्री जब भी उनसे हँसने-बोलने का प्रयास करती, तब तब उन्हें किसी ना किसी पुस्तक में निमग्न देखती। इस कारण स्त्री की इच्छा की पूर्ति नहीं हुई।
समय बीता। वही नेपोलियन देश का सेनापति चुना गया। सेनापति होने के बाद उसी नाई के यहां जाने का एक बार फिर अवसर आया। तब वे काफी बड़े हो गए थे, पहचाने भी नहीं जा सकते थे। दुकान पर नाई की स्त्री बैठी थी। नेपोलियन उसके पास जाकर पूछा, “क्या तुम को स्मरण है कि कभी तुम्हारे यहां बोनापार्ट नाम का कोई युवक कुछ दिनों के लिए रहा था?”
नाई की स्त्री झुंझलाकर बोली, “बस… बस रहने दो महोदय। वैसे नीरस व्यक्ति का मैं नाम लेना भी पसंद नहीं करती। किसी से मीठी बात करना तो उसने सीखा ही नहीं था। यहां तक कि उसको नाचना-गाना भी नहीं आता था। वह तो पुस्तकों का कीड़ा मात्र था।”
नेपोलियन हँसा और बोला, “ठीक कहती हो देवी, संयम ही मनुष्य को महान बनाता है। बोनापार्ट तुम्हारी रसिकता में उलझ गया होता तो देश का प्रधान सेनापति होकर तुम्हारे सामने आज कैसे खड़ा हो सकता था?”
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