प्रेमपात्र

श्री रामानुजाचार्य के जीवन में घटी एक घटना का वर्णन आता है। रंगदास नामक एक सेठ था जो एक वेश्या पर आसक्त था।  एक दिन रंगदास उस वेश्या के साथ प्रभु श्री रंगनाथजी के मंदिर  के सामने से जा रहा थे। वेश्या आगे-आगे मस्ती से चली जा रही थी, जब सेठ उस वेश्या के सर पर छाता तने हुए पीछे-पीछे सेवक की तरह चल रहा था।  ठीक उसी समय रामानुजाचार्य जी मंदिर से बाहर निकल रहे थे। उन्होंने इस दयनीय दृश्य को देखा। सेठ को भी जानते थे। उनकी वेश्या में इतनी आसक्ति देखकर रामानुजाचार्य जी को दुख हुआ। उन पर दया का भाव आया एवं उनके जीवन को सही दिशा देने का निश्चय किया।

रास्ते पर जाकर वे सेठ रंगदास से मिले एवं बोले कि वेश्या में आपका इतना प्रेम देखकर मुझे बड़ा आनंद मिल रहा है। यह निश्चय है कि आप इनके सौंदर्य के कारण ही इनमें आसक्त होकर प्रेम करते हैं।  मेरे प्रभु श्री रंगनाथजी इतने अधिक सुंदर हैं कि उनकी सुंदरता की तुलना इस पृथ्वी के किसी भी प्राणी से नहीं हो सकती। यदि आप मेरे प्रभु से प्रेम करने लग जायें तो आप का कल्याण हो जाएगा। प्रेम करने योग्य तो केवल परमात्मा ही हैं।  इतना कहकर रामानुजाचार्य  जी ने रंगदास को एक चाँटा मारा। रंगदास को वहीं पर समाधि लग गई।  उसे श्री रंगनाथजी के दर्शन हुए। प्रभु से प्रेम हो गया। अस्थाई प्रेमपात्र बदलकर चिरस्थाई प्रेम पात्र बन गया।

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