नसीहत
एक नौजवान जीवन से निराश होकर किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में भटकता फिरता था, जो उनके निराश जीवन में सही दिशा दे सके। एक दिन उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिल गया। उसने उस वृद्ध व्यक्ति को अपने जीवन की समस्याएं विस्तार में बताईं और किस तरह जीवन में सफलता मिल सके उसके बारे में उनकी राय जाननी चाही।
वृद्ध ने उस व्यक्ति की बात को अनसुनी करते हुए पूछ लिया कि, “क्या तुम सामने वाले पेड़ पर चढ़ सकते हो?” युवक ने बताया कि हां वह चढ़ सकता है। वृद्ध ने कहा, “तो चलना प्रारंभ करो।” युवक ने कहा, “लेकिन मेरी समस्याओं के समाधान के साथ वृक्षारोहण का क्या संपर्क?” वृद्ध ने उत्तर दृढ़ता से कहा, “तुमने मेरे सामने समस्याएं रख दी हैं, अब तुम निश्चिंत होकर जैसा मैं कहूं वैसा करो।”
एक प्रकार लाचारी से उसने वृक्ष पर चढ़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वह उच्चतम शिखर पर पहुंच गया। वृद्ध कुछ नहीं बोला, केवल युवक की क्रिया को शांत स्थिर होकर देखता रहा। अब वह जवान नीचे उतरने लगा। जब वह मुश्किल से ज़मीन से 10 से 15 फीट की ऊंचाई पर रह गया तो अचानक वृद्ध ने कहा, “बेटा संभलकर उतरना।”
युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ। जब आसमान जितनी ऊंचाई पर था, तब तो इस पागल ने कुछ नहीं कहा था। जब मैं ज़मीन के नज़दीक पहुंच रहा हूं, तब यह विचित्र आदमी उतरने के लिए आगाह कर रहा है। मन में क्रोध आया। उस क्रोध को साकार करते हुए पूछ लिया, “यह कैसी विचित्र बात है? जब तक मैं खतरे में था, तब तक आप चुप थे,जब मैंने खतरे की स्थिति पार कर ली है तब आप हमें सावधान होने का उपदेश कह रहे हैं, ऐसा क्यों?”
वह बूढ़ा जोर से हँसा, और कहा, “बेटे जब कोई खतरे में होता है तब वह स्वयं ही सावधान रहता है एवं जागा हुआ रहता है। जब आदमी खतरे से बाहर होता है, तभी से असली खतरे की शुरुआत होती है। वहीं से वह अन्यमनस्क हो जाता है। मैं बूढ़ा हो गया हूं, लेकिन मैंने खतरे की चोटियों से कभी किसी को गिरते नहीं देखा। जहां कोई खतरा नहीं होता मैंने लोगों को वही गिरते हुए देखा है।
जीवन में सफलता उसी के हाथ लगती है जो सदा जाग कर जीता है।
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