साथी की खोज
एक फकीर के घर में आधी रात गए एक चोर घुस गया। चोर ने सोचा, गृहस्वामी सो गया होगा। लेकिन तब वह जग रहा था। दिये की रोशनी में कुछ लिखने में तल्लीन था। चोर घबरा गया, छूरा निकाल लिया। फकीर ने उसकी तरफ देखा और कहा, “छूरा अंदर कर लो, इसकी शायद ही कोई जरूरत पड़े।” फिर कहा, “थोड़ा इंतजार करो, मैं यह लिखने का कार्य समाप्त कर लूं, फिर तुमसे काम की बात करूँगा।”
फकीर की बात में कुछ ऐसा आकर्षण था कि चोर सम्मोहित सा बैठ गया। हाथ का काम समाप्त कर फकीर ने पूछ, “कैसे आना हुआ? थोड़े में सच-सच बता दो, ज्यादा समय न खराब करो। मेरे सोने का समय हो गया है।” चोर ने कहा, “आप बड़े विचित्र व्यक्ति हैं। आप देख रहे हैं, मैं चोर हूँ, हाथ में छूरा है, काला कपड़ा पहने हूँ, चोरी करने आया हूं।”
फकीर ने कहा, “लेकिन तुम गलत जगह आ गए हो। आज तक किसी ने चोरी करने लायक मेरा घर नहीं समझा। यह पहला मौका है, कोई चोरी करने मेरे यहां आया है। आना ही था तो पहले सूचना तो दे देते, ताकि मैं तुम्हारी चोरी के लिए कुछ इंतज़ाम करके रखता। यहां तो कुछ भी नहीं है। क्या चुराओगे? अब यदि तुम खाली हाथ जाओगे तो बदनामी की बात होगी। लेकिन ठहरो, मैं देखता हूँ, कोई समान है भी कि नहीं जिसे तुम चुरा कर ले जा सको। कभी-कभी कोई व्यक्ति भेंट कर जाता है, देखूँ यदि कुछ मिल जाए।”
एक दस रुपया का नोट मिल गया। फकीर ने उस नोट को चोर के हवाले कर दिया, और कहा, “देखो, बाहर सर्दी काफी है, यह कंबल लेते जाओ।” फकीर ने जो कंबल ओढ़ रखा था उतार कर चोर को दे दिया। चोर तो प्रायः हतवाक् हो चला था। तो भी कहा, “आप तो बिल्कुल नग्न हो गए, इसको आप रख लें।” फकीर ने कहा, “मैं तो घर के अंदर हूं, लेकिन तुम्हें तो रास्ता चलकर घर जाना है, रुपयों से इस वक्त वस्त्र मिलेगा नहीं, न रुपयों से तन ढकेगा। फिर आज तक कोई इस घर से चोरी करने आया नहीं, तू ने हमें अमीर बनने का सौभाग्य प्रदान किया है। इसलिए तू कंबल ले जा। मैं बड़ा खुश हूं।”
चोर चला गया। फकीर चाँद की रोशनी में खिड़की से चोर को जाते देख कर खुश हो रहा था। वह बेहद खुश था। आज की चांदनी रात उसको बहुत सुहावनी लग रही थी।
कुछ महीनों बाद चोर पकड़ा गया। अदालत ने फकीर को भी बुलाकर पूछा कि उनके घर पर इसने चोरी की थी क्या? फकीर ने कहा, “नहीं। यह बहुत भला आदमी है। जब हमने उसको रुपए दिए तो इसने हमें धन्यवाद दिया। कंबल दिया तो लेना ही नहीं चाहता था, बड़ी मुश्किल से दिया। मेरे मजबूर करने पर बड़ी संकोच से यह कंबल ले गया था।”
कुछ और चोरियाँ उनकी पकड़ी गई थीं, इसलिए उस को दो साल का कारावास मिला। कारावास से छूटने के बाद वह दौड़ता हुआ फकीर के पास आया और उस के चरणों में लिपट गया। कहा, “मेरा उद्धार करो। मुझे आदमी बना दो। तुम पहले आदमी हो, जिसने मेरे साथ आदमी का सा व्यवहार किया, अब मुझे आदमी बना दो।”
फकीर के अंदर कोई चोर नहीं था, कोई दुश्मन नहीं था, सब मित्र थे। जो अंदर होता है, वही बाहर दिखता है। हम बाहर वह खोजते हैं, जो हमारे भीतर है। चोर चोर को खोज लेगा, बेईमान बेईमान को खोज लेगा, साधु साधु को खोज लेगा। एक ही गांव में कई यात्री उतरते हैं तो कोई वेश्यालय को खोजता है तो कोई मंदिरों को।
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