जितना दिखता है, उतना तो आगे बढ़ो
एक भोले-भाले किसान को रात्रि के समय एक आवश्यक कार्य से दो मील दूर किसी गांव में जाने की आवश्यकता पड़ गई। रास्ता अंधकारमय था। प्रकाश के लिए उसने लालटेन साथ में ली। पहले-पहल वह रात्रि में किसी अंय गाँव जा रहा था। उसने यात्रा आरंभ की। लेकिन आश्चर्य! घर से चार कदम चल कर वह एकाएक रुक गया।
गांव का ही किसी समझदार व्यक्ति उसे जाते हुए देख रहा था। उसे यात्रा के प्रारंभ में स्तंभित होकर रुकने का कारण पूछा, “क्यों भाई, रुक क्यों गए?”
किसान ने कहा, “हमें जाना है दो मील, लेकिन लालटेन के उजाले में रास्ता दिखता है केवल दस गज का। दो मील का रास्ता अंधेरे में कैसे पूरा होगा?”
सज्जन ने कहा, “भले आदमी, जितना दिखता है उतना तो आगे बढ़ो। उसके बाद फिर उतना ही रास्ता आगे और दिखने लगेगा।”
किसान ने बात मान ली। वह लालटेन लेकर चल पड़ा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, आगे का रास्ता प्रकाशित होता रहा और अंत में वह अपने लक्ष्य स्थान तक पहुंच ही गया।
तात्पर्य है कि अपने विवेक के प्रकाश में जितना सत्य दिखता हो, उसको आचरण में लाते रहने का परोक्ष सत्य भी प्रत्यक्ष हो जाएगा यह निश्चय है।
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