किसान-विधाता-पर्वत

विधाता ने अपनी रचित सृष्टि का सर्वेक्षण करने के विचार से दृष्टि दौड़ाई तो देखा कि एक किसान फावड़ा लेकर एक विशाल पर्वत शिखर को खोदने में तल्लीन है। कुछ विस्मय हुआ। साकार हो कर किसान के सम्मुख प्रकट हुए और उससे इस दुस्साहिक कार्य का कारण क्या है पूछा।

किसान ने अपने कार्य में व्यस्त रहते हुए ही बताया कि, “भगवान, बादल आते हैं और इस पर्वत शिखर से टकरा कर दूसरी ओर वर्षा कर देते हैं। मेरे खेत सूखे की सूखे ही रहते हैं। अतः मैंने संकल्प किया है कि इस पर्वत को मैं यहां से हटाकर ही चैन लूंगा।”

विधाता आश्चर्यचकित हुए, “क्या तुम इतने विशाल पर्वत को अकेले ही तोड़ पाओगे?”

किसान ने आत्मविश्वास के साथ कहा, “मेरा यह दृढ़ संकल्प है मुझे निश्चय इस कार्य में सफलता मिलेगी।”

विधाता किसान के आत्मबल पर निर्भरता को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए और आगे चलने को हुए। इतने में पर्वतराज  गिड़गिड़ाने लगे। “भगवान, इस किसान से मेरी रक्षा कीजिए।”

विधाता के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, “गिरिराज तुम एक छोटे से किसान से इतने त्रस्त हो गए हो।”

गिरिराज बोला, “किसान छोटा है तो क्या, उसका संकल्प दृढ़ है। उसका आत्म-विचार अडिग है। इन दोनों के द्वारा वह निश्चय ही हमें हटाने में समर्थ होगा।”

संकल्पशक्ति एवं आत्मविश्वास से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।

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