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दैवी सम्पत्ति के आश्रय से - मानवता

मानव में मानवता स्वाभाविक रूप से रहती है। यह उनका जन्मजात स्वभाव है, लेकिन किसी मानव में मानवता है या नहीं, यह उसकी बाह्य आकृति से बोध नहीं होता। यह मानव की प्रकृति से ही बोध होता है । भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमदृभगवदूगीता के सोलहवें अध्याय में दैवी एवं आसुरी प्रकृति की विस्तृत व्याख्या की है। दैवी-सम्पत्ति में “देव” शब्द परमात्मा का वाचक है और उनकी सम्पत्ति "दैवी-सम्पत्ति” है। परमात्मा का ही अंश होने से जीव में दैवी-सम्पत्ति स्वत: स्वाभाविक है। जब जीवन अपने अंशी परमात्मा से विमुख होकर जड़ प्रकृति के सम्मुख होता है अर्थात् उत्पत्ति-विनाशशील शरीरादि पदार्थों का संग कर लेता है, तब उसमें आसुरी-सम्पत्ति आ जाती है। दैवी-सम्पत्ति ही मानवीय सम्पत्ति या मानवीय गुण है कारण जीवात्मा परमात्मा का सनातन अंश है एवं ये गुण ही मानवता की आधारशिला है। मानव मानवीय गुणों का आश्रय न लेकर आसुरी गुणों को अपनाता है तो वह मानवता से विमुख होकर दानवता की ओर बढ़ता रहता है। इस कारण उनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ, द्वेष आदि दुर्गुण आ जाते हैं। भगवान् कहते हैं - देवी संपद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। मा शुच: संप

दैवी एवं आसुरी सम्पत्ति

भगवान ने कृपा कर मानव शरीर दिया है , शरीर का कुछ पता नहीं कि कब प्राण चले जायें? ऐसी अवस्था में जल्दी से जल्दी अपना उद्धार करने के लिए आसुरी सम्पत्ति का त्याग करना बहुत आवश्यक है| परमात्मा का ही अंश होने के कारण जीव में दैवी सम्पत्ति स्वाभाविक है, लेकिन परमात्मा से विमुख होकर जब जीव उत्त्पति-विनाशशील शरीरादि पदार्थों का संग कर लेता है, तब उसमे आसुरी सम्पत्ति आ जाती है| दैवी और आसुरी सम्पत्ति सब प्राणियों में पायी जाती है| यद्यपि जीवन-मुक्त, तत्वज्ञ महापुरुष तो आसुरी सम्पत्ति से रहित होते हैं, लेकिन अन्य जीवों में आसुरी सम्पत्ति की मुख्यता होने के कारण दैवी सम्पत्ति दब-सी जाती है सर्वथा मिटति नहीं क्योंकि सत् वस्तु कभी मिट नहीं सकती| कोई कितना ही दुर्गुणी, दुराचारी क्यों न हो उसके साथ आंशिक सदगुण, सदाचार रहेंगे ही| प्राणी-मात्र में यह इच्छा रहती है कि - १. मैं सदा जीता रहूँ अर्थात कभी मरूँ नहीं - (सत्) २. मैं सब कुछ जान लूँ अर्थात कभी अज्ञानी न रहूँ - (चित्) ३. मैं सर्वदा सुखी रहूँ अर्थात कभी दुःखी न होऊँ - (आनन्द) इस प्रकार सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा का अंश होने से प्राणिमात्र में सत