हृदय का प्यार

रूस के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री टॉलस्टॉय ने एक कहानी लिखी है। एक थे पादरी महोदय, बहुत बड़े धर्म-प्रचारक। स्थान स्थान पर जाकर लोगों को इसामसि का उपदेश देते। वे प्रार्थना सिखाते जो बाइबिल में लिखी है। लोगों से कहते, “यह प्रार्थना करो, तभी तुम्हारा कल्याण होगा।” देश के बाहर दूसरे देशों में भी वे धर्म प्रचार हेतु गये। जहाज़ से जाते हुए उन्होंने समुद्र में एक चोट सा द्वीप देखा। सोचा, शायद यहाँ भी कोई व्यक्ति हो, चलो उसके पास चलें, उसे ईश्वर से प्रार्थना करने का मार्ग बतायें। वे द्वीप में उतर पड़े। इधर-उधर देखा, परंतु कोई दिखाई नहीं दिया। मन-ही-मन कुछ सोच रहे थे, तभी द्वीप के दूसरे ओर से तीन बूढ़े आते दिखाई दिये। पादरी महोदय रुक गए। बूढ़े निकट आये तो पादरी ने देखा, उनकी दाढ़ियां सफ़ेद हैं, सिर के बाल भी सफ़ेद हैं। वृक्षों की छाल से उन्होंने अपना शरीर ढाँक रखा है, कोई भी वस्त्र उनके पास नहीं। पादरी ने पूछा “यहाँ कोई ग्राम अथवा नगर नहीं है?”


एक वृद्ध ने कहा, “नहीं, इस द्वीप में हम तीन ही रहते हैं, चौथा कोई नहीं। फल है वही खा लेते हैं; पानी पी लेते हैं। कभी कोई भुला-भटका इधर आ जाता है तो उसे भी खिला-पिला देते हैं।”


पादरी ने कहा, “बस यही करते हो! भला उस ईश्वर को भी याद करो जिसने तुम्हें उत्पन्न किया है।”


दूसरे वृद्ध ने कहा, “उसे तो हम स्मरण करते ही हैं। क्योंकि ईश्वर-स्मरण के अतिरिक्त हमारे पास और कोई काम है ही नहीं।”


पादरी ने पूछा, “किस प्रकार स्मरण करते हो?”


तीसरे वृद्ध ने कहा, “हम तीनों बैठ जाते हैं, आकाश की ओर देखते हैं, हाथ उठाकर कहते हैं - “हम तीन हैं, तुम तीन हो हमारी रक्षा करो।”


पादरी ने सोचा, “यह क्या मूर्खों की सी प्रार्थना है?” उसने कहा “तुम लोग बूढ़े हो गए। सारा जीवन तुमने नष्ट कर दिया। बैठो, मैं तुम्हें वास्तविक प्रार्थना सिखाता हूँ।”


इसके पश्च्यात पादरी ने पर्याप्त समय लगा कर, काफी प्रयत्न के बाद बाइबिल में लिखी हुई प्रार्थना उन्हें सिखायी। जब उसे तस्सली हो गयी की वे प्रार्थना ठीक प्रकार से सीख गये हैं, तो अपने जहाज़ में बैठकर चल दिया। चलते हुए एक दिन व्यतीत हो गया। दूसरे दिन प्रातः जहाज़ पर खड़े एक व्यक्ति ने पीछे की ओर देखकर कहा, “दूर वह काल सा धब्बा क्या है?”


पादरी ने पीछे की ओर देखा, बोला, “कुछ है तो सही, जैसे कोई द्वीप हो; परंतु उधर से ही तो हम आये हैं, उधर कोई द्वीप था नहीं। उन बूढ़ों वाला द्वीप बहुत पीछे रह गया है।”


तभी उस व्यक्ति ने पुनः कहा, “पादरी जी! एक नहीं तीन धब्बे हैं, वे और बड़े होते जा रहे हैं।” पादरी ने भी देखा, बोला “सचमुच ये तो तीन हैं और बड़े होते जा रहे हैं, जैसे हमारे समीप आ रहे हों।”


उस व्यक्ति ने कहा, “परंतु हम तो भयभीत हो रहे हैं।” तभी पादरी ने ध्यान से देखते हुए कहा, “अरे! यह द्वीप नहीं समुद्री पशु प्रतीत होते हैं, बढ़े चले आ रहे हैं।”
किंतु कुछ ही देर में जहाज़ वालों ने देखा की वे पशु नहीं वही तीन बूढ़े हैं, जिन्हें एक दिन पूर्व उस द्वीप में प्रार्थना सिखा कर आये थे। इस समय तीनों पानी पर दौड़ते आ रहे थे। हाथ उठा-उठाकर आवाज़ भी दे रहे थे। पादरी ने चिल्ला कर कहा, “जहाज़ रोको!”


जहाज़ रुका, परंतु पादरी महोदय चकित थे कि ये लोग पानी पर कैसे दौड़ रहे हैं, डूबते क्यों नहीं?


इतने में ही उन तीनों बूढ़ों ने जहाज़ में आकर कहा, “पादरी महोदय! हम अनपढ़ व्यक्ति हैं। आप जो प्रार्थना हमें सिख आये थे, वह हम भूल गए। उनके शब्द ठीक प्रकार से स्मरण नहीं आते। कृपा कर हमें उन्हें फिर से सिखाएं।”


पादरी ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा, और कहा, ”मगर तुम पानी पर दौड़े किस प्रकार?”


एक वृद्ध ने कहा, “यह तो साधारण बात है, पादरी महोदय। हम भगवान से बोले, हमें पादरी महोदय के पास जाना है, नौका हमारे पास नहीं। दौड़ हम लेगें भगवान, कृपा करो कि हम दौड़ते चले जाएँ, पानी में डूब न जाएँ और हम चल पड़े।”


पादरी ने हाथ जोड़ लिया, सिर झुका दिया उनके सामने और धीरे से बोला, “महात्माओं! आप लोग वापस जाएँ। वही प्रार्थना करें जो पहले किया करते थे। ईश्वर हृदय की आवाज़ सुनता है, उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं।”

यह एक काल्पनिक कहानी है। लेखक महोदय इस कथा के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि वह आनंद सिंधु, करुणा निधान भगवान हृदय के प्यार को देखता है। आपके हृदय में उनके लिए यदि सच्चा प्यार है तो वह मिलेगा अवश्य।